Sai Chalisa Lyrics in Hindi and English – गुरुवार स्पेशल श्री साईं चालीसा लिरिक्स

Sai Chalisa Lyrics in Hindi

पहले साई के चरणों में,
अपना शीश नमाऊं मैं,
कैसे शिरडी साई आए,
सारा हाल सुनाऊं मैं ।
कौन है माता, पिता कौन है,
यह ना किसी ने भी जाना,
कहाँ जन्म साई ने धारा,
प्रश्र्न पहेली रहा बना ।

कोई कहे अयोध्या के,
ये रामचंद्र भगवान हैं,
कोई कहता साई बाबा,
पवन पुत्र हनुमान हैं ।
कोई कहता मंगल मूर्ति,
श्री गजानंद हैं साई,
कोई कहता गोकुल मोहन,
देवकी नन्दन हैं साई ।

शंकर समझे भकत कई तो,
बाबा को भजते रहते,
कोई कह अवतार दत्त का,
पूजा साई की करते ।
कोई भी मानो उनको तुम,
पर साई हैं सच्चे भगवान,
बड़े दयालु दीनबंधु,
कितनों को दिया जीवन दान ।

कई वर्ष पहले की घटना,
तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात,
किसी भाग्यशाली की,
शिरडी में आई थी बारात ।
आया साथ उसी के था,
बालक एक बहुत सुन्दर,
आया, आकर वहीं बस गया,
पावन शिरडी किया नगर ।

कई दिनों तक भटकता,
भिक्षा मांग उसने दर-दर,
और दिखाई ऐसी लीला,
जग में जो हो गई अमर ।
जैसे – जैसे उमर बढ़ी,
बढ़ती ही वैसे गई शान,
घर-घर होने लगा नगर में,
साई बाबा का गुणगान ।

दिग दिगंत में लगा गूँजने,
फिर तो साई जी का नाम,
दीन – दुखी की रक्षा करना,
यही रहा बाबा का काम ।
बाबा के चरणों में जाकर,
जो कहता मैं हूँ निर्धन,
दया उसी पर होती उनकी,
खुल जाते दुख के बंधन ।

कभी किसी ने मांगी भिक्षा,
दो बाबा मुझको संतान,
एवमस्तु तब कहकर साई,
देते थे उसको वरदान ।
स्वयं दुखी बाबा हो जाते,
दीन – दुखीजन का लख हाल,
अंत:करण श्री साई का,
सागर जैसा रहा विशाल ।

भकत एक मद्रासी आया,
घर का बहुत बड़ा धनवान,
माल खजाना बेहद उसका,
केवल नहीं रही संतान ।
लगा मनाने साईनाथ को,
बाबा मुझ पर दया करो,
झंझा से झंकृत नैया को,
तुम्हीं मेरी पार करो ।

कुलदीपक के बिना अँधेरा,
छाया हुआ घर में मेरे,
इसलिए आया हूँ बाबा,
होकर शरणागत तेरे ।
कुलदीपक के अभाव में,
व्यर्थ है दौलत की माया,
आज भिखारी बनकर बाबा,
शरण तुम्हारी मैं आया ।

दे-दो मुझको पुत्र-दान,
मैं ऋणी रहूँगा जीवन भर,
और किसी की आशा न मुझको,
सिर्फ भरोसा है तुम पर ।
अनुनय – विनय बहुत की उसने,
चरणों में धर के शीश,
तब प्रसन्न होकर बाबा ने,
दिया भकत को यह आशीष ।

अल्ला भला करेगा तेरा,
पुत्र जन्म हो तेरे घर,
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी,
और तेरे उस बालक पर ।
अब तक नहीं किसी ने पाया,
साई की कृपा का पार,
पुत्र रत्न दे मद्रासी को,
धन्य किया उसका संसार ।

तन-मन से जो भजे उसी का,
जग में होता है उद्धार,
सांच को आंच नहीं हैं कोई,
सदा झूठ की होती हार ।
मैं हूँ सदा सहारे उसके,
सदा रहूँगा उसका दास,
साई जैसा प्रभु मिला है,
इतनी ही कम है क्या आस ।

मेरा भी दिन था एक ऐसा,
मिलती नहीं मुझे रोटी,
तन पर कपड़ा दूर रहा था,
शेष रही नन्हीं सी लंगोटी ।
सरिता सन्मुख होने पर भी,
मैं प्यासा का प्यासा था,
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर,
दावाग्नी बरसाता था ।

धरती के अतिरिक्त जगत में,
मेरा कुछ अवलंब न था,
बना भिखारी मैं दुनिया में,
दर-दर ठोकर खाता था ।
ऐसे में एक मित्र मिला जो,
परम भकत साई का था,
जंजालों से मुकत मगर,
जगत में वह भी मुझसा था ।

बाबा के दर्शन की खातिर,
मिल दोनों ने किया विचार,
साई जैसे दया मूर्ति के,
दर्शन को हो गए तैयार ।
पावन शिरडी नगर में जाकर,
देख मतवाली मूर्ति,
धन्य जन्म हो गया कि हमने,
जब देखी साई की सूरति ।

जब से किए हैं दर्शन हमने,
दुख सारा काफूर हो गया,
संकट सारे मिटे और,
विपदाओं का अंत हो गया ।
मान और सम्मान मिला,
भिक्षा में हमको बाबा से,
प्रतिबिंबित हो उठे जगत में,
हम साई की आभा से ।

बाबा ने सन्मान दिया है,
मान दिया इस जीवन में,
इसका ही संबल ले मैं,
हसंता जाऊँगा जीवन में ।
साई की लीला का मेरे,
मन पर ऐसा असर हुआ,
लगता जगती के कण-कण में,
जैसे हो वह भरा हुआ ।

काशीराम बाबा का भक्त,
शिरडी में रहता था,
मैं साई का साई मेरा,
वह दुनिया से कहता था ।
सीकर स्वयं वस्त्र बेचता,
ग्राम – नगर बाजारों में,
झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी,
साई की झंकारों में ।

स्तब्ध निशा थी, थे सोए,
रजनी आंचल में चांद सितारे,
नहीं सूझता रहा हाथ को,
हाथ तिमिर के मारे ।
वस्त्र बेचकर लौट रहा था,
हाय हाट से काशी,
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन,
आता था एकाकी ।

घेर राह में खड़े हो गए,
उसे कुटिल अन्यायी,
मारो काटो लूटो इसकी ही,
ध्वनि पड़ी सुनाई ।
लूट पीटकर उसे वहाँ से,
कुटिल गए चम्पत हो,
आघातों में मर्माहत हो,
उसने दी संज्ञा खो ।

बहुत देर तक पड़ा रह वह,
वहीं उसी हालत में,
जाने कब कुछ होश हो उठा,
वहीं उसकी पलक में ।
अनजाने ही उसके मुंह से,
निकल पड़ा था साई,
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में,
बाबा को पड़ी सुनाई ।

क्षुब्ध हो उठा मानस उनका,
बाबा गए विकल हो,
लगता जैसे घटना सारी,
घटी उन्हीं के सन्मुख हो ।
उन्मादी से इधर – उधर तब,
बाबा लेगे भटकने,
सन्मुख चीजें जो भी आई,
उनको लगने पटकने ।

और धधकते अंगारों में,
बाबा ने अपना कर डाला,
हुए सशंकित सभी वहाँ,
लख तांडवनृत्य निराला ।
समझ गए सब लोग,
कि कोई भकत पड़ा संकट में,
क्षुभित खड़े थे सभी वहाँ,
पर पड़े हुए विस्मय में ।

उसे बचाने की ही खातिर,
बाबा आज विकल है,
उसकी ही पीड़ा से पीड़‍ित,
उनकी अंत:स्थल है ।
इतने में ही विविध ने अपनी,
विचित्रता दिखलाई,
लख कर जिसको जनता की,
श्रद्धा सरिता लहराई ।

लेकर संज्ञाहीन भकत को,
गाड़ी एक वहाँ आई,
सन्मुख अपने देख भकत को,
साई की आँखे भर आ ।
शांत, धीर, गंभीर, सिंधु-सा,
बाबा का अंत:स्थल,
आज न जाने क्यों रह-रहकर,
हो जाता था चंचल ।

आज दया की मूर्ति स्वयं था,
बना हुआ उपचारी,
और भकत के लिए आज था,
देव बना प्रतिहारी ।
आज भकत की विषम परीक्षा में,
सफल हुआ था काशी,
उसके ही दर्शन की खातिर थे,
उमड़े नगर-निवासी ।

जब भी और जहाँ भी कोई,
भकत पड़े संकट में,
उसकी रक्षा करने बाबा,
आते हैं पलभर में ।
युग-युग का है सत्य यह,
नहीं कोई नई कहानी,
आपद्‍ग्रस्त भकत जब होता,
जाते खुद अंर्तयामी ।

भेदभाव से परे पुजारी,
मानवता के थे साई,
जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम,
उतने ही थे सिक्ख ईसाई ।
भेद-भाव मंदिर-मिस्जद का,
तोड़-फोड़ बाबा ने डाला,
राह रहीम सभी उनके थे,
कृष्ण करीम अल्लाताला ।

घंटे की प्रतिध्वनि से गूंजा,
मस्जिद का कोना-कोना,
मिले परस्पर हिन्दू – मुस्लिम,
प्यार बढ़ा दिन – दिन दूना ।
चमत्कार था कितना सुन्दर,
परिचय इस काया ने दी,
और नीम कडुवाहट में भी,
मिठास बाबा ने भर दी ।

सब को स्नेह दिया साई ने,
सबको संतुल प्यार किया,
जो कुछ जिसने भी चाहा,
बाबा ने उसको वही दिया ।
ऐसे स्नेहशील भाजन का,
नाम सदा जो जपा करे,
पर्वत जैसा दुख न क्यों हो,
पलभर में वह दूर टरे ।

साई जैसा दाता हमने,
अरे नहीं देखा कोई,
जिसके केवल दर्शन से ही,
सारी विपदा दूर गई ।
तन में साई, मन में साई,
साई-साई भजा करो,
अपने तन की सुधि – बुधि खोकर,
सुधि उसकी तुम किया करो ।

जब तू अपनी सुधि तज,
बाबा की सुधि किया करेगा,
और रात-दिन बाबा-बाबा,
ही तू रटा करेगा ।
तो बाबा को अरे! विवश हो,
सुधि तेरी लेनी ही होगी,
तेरी हर इच्छा बाबा को,
पूरी ही करनी होगी ।

जंगल, जंगल भटक न पागल,
और ढूढ़ने बाबा को,
एक जगह केवल शिरडी में,
तू पाएगा बाबा को ।
धन्य जगत में प्राणी है वह,
जिसने बाबा को पाया,
दुख में, सुख में प्रहर आठ हो,
साई का ही गुण गाया ।

गिरे संकटों के पर्वत,
चाहे बिजली ही टूट पड़े,
साई का ले नाम सदा तुम,
सन्मुख सबके रहो अड़े ।
इस बूढ़े की सुन करामत,
तुम हो जाओगे हैरान,
दंग रह गए सुनकर जिसको,
जाने कितने चतुर सुजान ।

एक बार शिरडी में साधु,
ढ़ोंगी था कोई आया,
भोली – भाली नगर-निवासी,
जनता को था भरमाया ।
जड़ी-बूटियाँ उन्हें दिखाकर,
करने लगा वह भाषण,
कहने लगा सुनो श्रोतागण,
घर मेरा है वृन्दावन ।

औषधि मेरे पास एक है,
और अजब इसमें शक्ति,
इसके सेवन करने से ही,
हो जाती दुख से मुक्ति ।
अगर मुकत होना चाहो,
तुम संकट से बीमारी से,
तो है मेरा नम्र निवेदन,
हर नर से, हर नारी से ।

लो खरीद तुम इसको,
इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी,
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह,
गुण उसके हैं अति भारी ।
जो है संतति हीन यहाँ यदि,
मेरी औषधि को खाए,
पुत्र – रत्न हो प्राप्त,
अरे वह मुँह मांगा फल पाए ।

औषधि मेरी जो न खरीदे,
जीवन भर पछताएगा,
मुझ जैसा प्राणी शायद ही,
अरे यहाँ आ पाएगा ।
दुनिया दो दिनों का मेला है,
मौज शौक तुम भी कर लो,
अगर इससे मिलता है, सब कुछ,
तुम भी इसको ले लो ।

हैरानी बढ़ती जनता की,
देख इसकी कारस्तानी,
प्रमुदित वह भी मन ही मन था,
देख लोगों की नादानी ।
खबर सुनाने बाबा को यह,
गया दौड़कर सेवक एक,
सुनकर भृकुटी तनी और,
विस्मरण हो गया सभी विवेक ।

हुक्म दिया सेवक को,
सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ,
या शिरडी की सीमा से,
कपटी को दूर भगाओ ।
मेरे रहते भोली – भाली,
शिरडी की जनता को,
कौन नीच ऐसा जो,
साहस करता है छलने को ।

पलभर में ऐसे ढोंगी,
कपटी नीच लुटेरे को,
महानाश के महागर्त में पहुंचना,
दूं जीवन भर को ।
तनिक मिला आभास मदारी,
क्रूर, कुटिल अन्यायी को,
काल नाचता है अब सिर पर,
गुस्सा आया साई को ।

पलभर में सब खेल बंद कर,
भागा सिर पर रखकर पैर,
सोच रहा था मन ही मन,
भगवान नहीं है अब खैर ।
सच है साई जैसा दानी,
मिल न सकेगा जग में,
अंश ईश का साई बाबा,
उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में ।

स्नेह, शील, सौजन्य आदि का,
आभूषण धारण कर,
बढ़ता इस दुनिया में जो भी,
मानव सेवा के पथ पर ।
वही जीत लेता है जगत के,
जन जन का अंत:स्थल,
उसकी एक उदासी ही,
जग को कर देती है विह्वल ।

जब-जब जग में भार पाप का,
बढ़ – बढ़ ही जाता है,
उसे मिटाने की ही खातिर,
अवतारी ही आता है ।
पाप और अन्याय सभी कुछ,
इस जगती का हर के,
दूर भगा देता दुनिया के,
दानव को क्षण भर के ।

ऐसे ही अवतारी साईं,
मृत्युलोक में आकर,
समता का यह पाठ पढ़ाया,
सबको अपना आप मिटाकर ।
नाम द्वारका मस्जिद का,
रखा शिरडी में साई ने,
दाप, ताप, संताप मिटाया,
जो कुछ आया साई ने ।

सदा याद में मस्त राम की,
बैठे रहते थे साई,
पहर आठ ही राम नाम को,
भजते रहते थे साई ।
सूखी – रूखी ताजी बासी,
चाहे या होवे पकवान,
सौदा प्यार के भूखे साई की,
खातिर थे सभी समान ।

स्नेह और श्रद्धा से अपनी,
जन जो कुछ दे जाते थे,
बड़े चाव से उस भोजन को,
बाबा पावन करते थे ।
कभी-कभी मन बहलाने को,
बाबा बाग में जाते थे,
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति,
आनंदित वे हो जाते थे ।

रंग-बिरंगे पुष्प बाग के,
मन्द – मन्द हिल – डुल करके,
बीहड़ वीराने मन में भी,
स्नेह सलिल भर जाते थे ।
ऐसी सुमधुर बेला में भी,
दुख आपात, विपदा के मारे,
अपने मन की व्यथा सुनाने,
जन रहते बाबा को घेरे ।

सुनकर जिनकी करूणकथा को,
नयन कमल भर आते थे,
दे विभूति हर व्यथा, शांति,
उनके उर में भर देते थे ।
जाने क्या अद्भुत शक्ति,
उस विभूति में होती थी,
जो धारण करते मस्तक पर,
दुख सारा हर लेती थी ।

धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन,
जो बाबा साई के पाए,
धन्य कमल कर उनके जिनसे,
चरण-कमल वे परसाए ।
काश निर्भय तुमको भी,
साक्षात् साई मिल जाता,
वर्षों से उजड़ा चमन अपना,
फिर से आज खिल जाता ।

गर पकड़ता मैं चरण श्री के,
नहीं छोड़ता उम्रभर,
मना लेता मैं जरूर उनको,
गर रूठते साई मुझ पर ।

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Shri Sai Chalisa Lyrics in English

pahale saee ke charanon mein,
apana sheesh namaoon main,
kaise shiradee saee aae,
saara haal sunaoon main.
kaun hai maata, pita kaun hai,
yah na kisee ne bhee jaana,
kahaan janm saee ne dhaara,
prashrn pahelee raha bana.

koee kahe ayodhya ke,
ye raamachandr bhagavaan hain,
koee kahata saee baaba,
pavan putr hanumaan hain.
koee kahata mangal moorti,
shree gajaanand hain saee,
koee kahata gokul mohan,
devakee nandan hain saee.

shankar samajhe bhakat kaee to,
baaba ko bhajate rahate,
koee kah avataar datt ka,
pooja saee kee karate.
koee bhee maano unako tum,
par saee hain sachche bhagavaan,
bade dayaalu deenabandhu,
kitanon ko diya jeevan daan.

kaee varsh pahale kee ghatana,
tumhen sunaoonga main baat,
kisee bhaagyashaalee kee,
shiradee mein aaee thee baaraat.
aaya saath usee ke tha,
baalak ek bahut sundar,
aaya, aakar vaheen bas gaya,
paavan shiradee kiya nagar.

kaee dinon tak bhatakata,
bhiksha maang usane dar-dar,
aur dikhaee aisee leela,
jag mein jo ho gaee amar.
jaise – jaise umar badhee,
badhatee hee vaise gaee shaan,
ghar-ghar hone laga nagar mein,
saee baaba ka gunagaan.

dig digant mein laga goonjane,
phir to saee jee ka naam,
deen – dukhee kee raksha karana,
yahee raha baaba ka kaam.
baaba ke charanon mein jaakar,
jo kahata main hoon nirdhan,
daya usee par hotee unakee,
khul jaate dukh ke bandhan.

kabhee kisee ne maangee bhiksha,
do baaba mujhako santaan,
evamastu tab kahakar saee,
dete the usako varadaan.
svayan dukhee baaba ho jaate,
deen – dukheejan ka lakh haal,
ant:karan shree saee ka,
saagar jaisa raha vishaal.

bhakat ek madraasee aaya,
ghar ka bahut bada dhanavaan,
maal khajaana behad usaka,
keval nahin rahee santaan.
laga manaane saeenaath ko,
baaba mujh par daya karo,
jhanjha se jhankrt naiya ko,
tumheen meree paar karo.

kuladeepak ke bina andhera,
chhaaya hua ghar mein mere,
isalie aaya hoon baaba,
hokar sharanaagat tere.
kuladeepak ke abhaav mein,
vyarth hai daulat kee maaya,
aaj bhikhaaree banakar baaba,
sharan tumhaaree main aaya.

de-do mujhako putr-daan,
main rnee rahoonga jeevan bhar,
aur kisee kee aasha na mujhako,
sirph bharosa hai tum par.
anunay – vinay bahut kee usane,
charanon mein dhar ke sheesh,
tab prasann hokar baaba ne,
diya bhakat ko yah aasheesh.

alla bhala karega tera,
putr janm ho tere ghar,
krpa rahegee tujh par usakee,
aur tere us baalak par.
ab tak nahin kisee ne paaya,
saee kee krpa ka paar,
putr ratn de madraasee ko,
dhany kiya usaka sansaar.

tan-man se jo bhaje usee ka,
jag mein hota hai uddhaar,
saanch ko aanch nahin hain koee,
sada jhooth kee hotee haar.
main hoon sada sahaare usake,
sada rahoonga usaka daas,
saee jaisa prabhu mila hai,
itanee hee kam hai kya aas.

mera bhee din tha ek aisa,
milatee nahin mujhe rotee,
tan par kapada door raha tha,
shesh rahee nanheen see langotee.
sarita sanmukh hone par bhee,
main pyaasa ka pyaasa tha,
durdin mera mere oopar,
daavaagnee barasaata tha.

dharatee ke atirikt jagat mein,
mera kuchh avalamb na tha,
bana bhikhaaree main duniya mein,
dar-dar thokar khaata tha.
aise mein ek mitr mila jo,
param bhakat saee ka tha,
janjaalon se mukat magar,
jagat mein vah bhee mujhasa tha.

baaba ke darshan kee khaatir,
mil donon ne kiya vichaar,
saee jaise daya moorti ke,
darshan ko ho gae taiyaar.
paavan shiradee nagar mein jaakar,
dekh matavaalee moorti,
dhany janm ho gaya ki hamane,
jab dekhee saee kee soorati.

jab se kie hain darshan hamane,
dukh saara kaaphoor ho gaya,
sankat saare mite aur,
vipadaon ka ant ho gaya.
maan aur sammaan mila,
bhiksha mein hamako baaba se,
pratibimbit ho uthe jagat mein,
ham saee kee aabha se.

baaba ne sanmaan diya hai,
maan diya is jeevan mein,
isaka hee sambal le main,
hasanta jaoonga jeevan mein.
saee kee leela ka mere,
man par aisa asar hua,
lagata jagatee ke kan-kan mein,
jaise ho vah bhara hua.

kaasheeraam baaba ka bhakt,
shiradee mein rahata tha,
main saee ka saee mera,
vah duniya se kahata tha.
seekar svayan vastr bechata,
graam – nagar baajaaron mein,
jhankrt usakee hrday tantree thee,
saee kee jhankaaron mein.

stabdh nisha thee, the soe,
rajanee aanchal mein chaand sitaare,
nahin soojhata raha haath ko,
haath timir ke maare.
vastr bechakar laut raha tha,
haay haat se kaashee,
vichitr bada sanyog ki us din,
aata tha ekaakee.

gher raah mein khade ho gae,
use kutil anyaayee,
maaro kaato looto isakee hee,
dhvani padee sunaee.
loot peetakar use vahaan se,
kutil gae champat ho,
aaghaaton mein marmaahat ho,
usane dee sangya kho.

bahut der tak pada rah vah,
vaheen usee haalat mein,
jaane kab kuchh hosh ho utha,
vaheen usakee palak mein.
anajaane hee usake munh se,
nikal pada tha saee,
jisakee pratidhvani shiradee mein,
baaba ko padee sunaee.

kshubdh ho utha maanas unaka,
baaba gae vikal ho,
lagata jaise ghatana saaree,
ghatee unheen ke sanmukh ho.
unmaadee se idhar – udhar tab,
baaba lege bhatakane,
sanmukh cheejen jo bhee aaee,
unako lagane patakane.

aur dhadhakate angaaron mein,
baaba ne apana kar daala,
hue sashankit sabhee vahaan,
lakh taandavanrty niraala.
samajh gae sab log,
ki koee bhakat pada sankat mein,
kshubhit khade the sabhee vahaan,
par pade hue vismay mein.

use bachaane kee hee khaatir,
baaba aaj vikal hai,
usakee hee peeda se peed‍it,
unakee ant:sthal hai.
itane mein hee vividh ne apanee,
vichitrata dikhalaee,
lakh kar jisako janata kee,
shraddha sarita laharaee.

lekar sangyaaheen bhakat ko,
gaadee ek vahaan aaee,
sanmukh apane dekh bhakat ko,
saee kee aankhe bhar aa.
shaant, dheer, gambheer, sindhu-sa,
baaba ka ant:sthal,
aaj na jaane kyon rah-rahakar,
ho jaata tha chanchal.

aaj daya kee moorti svayan tha,
bana hua upachaaree,
aur bhakat ke lie aaj tha,
dev bana pratihaaree.
aaj bhakat kee visham pareeksha mein,
saphal hua tha kaashee,
usake hee darshan kee khaatir the,
umade nagar-nivaasee.

jab bhee aur jahaan bhee koee,
bhakat pade sankat mein,
usakee raksha karane baaba,
aate hain palabhar mein.
yug-yug ka hai saty yah,
nahin koee naee kahaanee,
aapad‍grast bhakat jab hota,
jaate khud anrtayaamee.

bhedabhaav se pare pujaaree,
maanavata ke the saee,
jitane pyaare hindoo-muslim,
utane hee the sikkh eesaee.
bhed-bhaav mandir-misjad ka,
tod-phod baaba ne daala,
raah raheem sabhee unake the,
krshn kareem allaataala.

ghante kee pratidhvani se goonja,
masjid ka kona-kona,
mile paraspar hindoo – muslim,
pyaar badha din – din doona.
chamatkaar tha kitana sundar,
parichay is kaaya ne dee,
aur neem kaduvaahat mein bhee,
mithaas baaba ne bhar dee.

sab ko sneh diya saee ne,
sabako santul pyaar kiya,
jo kuchh jisane bhee chaaha,
baaba ne usako vahee diya.
aise snehasheel bhaajan ka,
naam sada jo japa kare,
parvat jaisa dukh na kyon ho,
palabhar mein vah door tare.

saee jaisa daata hamane,
are nahin dekha koee,
jisake keval darshan se hee,
saaree vipada door gaee.
tan mein saee, man mein saee,
saee-saee bhaja karo,
apane tan kee sudhi – budhi khokar,
sudhi usakee tum kiya karo.

jab too apanee sudhi taj,
baaba kee sudhi kiya karega,
aur raat-din baaba-baaba,
hee too rata karega.
to baaba ko are! vivash ho,
sudhi teree lenee hee hogee,
teree har ichchha baaba ko,
pooree hee karanee hogee.

jangal, jangal bhatak na paagal,
aur dhoodhane baaba ko,
ek jagah keval shiradee mein,
too paega baaba ko.
dhany jagat mein praanee hai vah,
jisane baaba ko paaya,
dukh mein, sukh mein prahar aath ho,
saee ka hee gun gaaya.

gire sankaton ke parvat,
chaahe bijalee hee toot pade,
saee ka le naam sada tum,
sanmukh sabake raho ade.
is boodhe kee sun karaamat,
tum ho jaoge hairaan,
dang rah gae sunakar jisako,
jaane kitane chatur sujaan.

ek baar shiradee mein saadhu,
dhongee tha koee aaya,
bholee – bhaalee nagar-nivaasee,
janata ko tha bharamaaya.
jadee-bootiyaan unhen dikhaakar,
karane laga vah bhaashan,
kahane laga suno shrotaagan,
ghar mera hai vrndaavan.

aushadhi mere paas ek hai,
aur ajab isamen shakti,
isake sevan karane se hee,
ho jaatee dukh se mukti.
agar mukat hona chaaho,
tum sankat se beemaaree se,
to hai mera namr nivedan,
har nar se, har naaree se.

lo khareed tum isako,
isakee sevan vidhiyaan hain nyaaree,
yadyapi tuchchh vastu hai yah,
gun usake hain ati bhaaree.
jo hai santati heen yahaan yadi,
meree aushadhi ko khae,
putr – ratn ho praapt,
are vah munh maanga phal pae.

aushadhi meree jo na khareede,
jeevan bhar pachhataega,
mujh jaisa praanee shaayad hee,
are yahaan aa paega.
duniya do dinon ka mela hai,
mauj shauk tum bhee kar lo,
agar isase milata hai, sab kuchh,
tum bhee isako le lo.

hairaanee badhatee janata kee,
dekh isakee kaarastaanee,
pramudit vah bhee man hee man tha,
dekh logon kee naadaanee.
khabar sunaane baaba ko yah,
gaya daudakar sevak ek,
sunakar bhrkutee tanee aur,
vismaran ho gaya sabhee vivek.

hukm diya sevak ko,
satvar pakad dusht ko lao,
ya shiradee kee seema se,
kapatee ko door bhagao.
mere rahate bholee – bhaalee,
shiradee kee janata ko,
kaun neech aisa jo,
saahas karata hai chhalane ko.

palabhar mein aise dhongee,
kapatee neech lutere ko,
mahaanaash ke mahaagart mein pahunchana,
doon jeevan bhar ko.
tanik mila aabhaas madaaree,
kroor, kutil anyaayee ko,
kaal naachata hai ab sir par,
gussa aaya saee ko.

palabhar mein sab khel band kar,
bhaaga sir par rakhakar pair,
soch raha tha man hee man,
bhagavaan nahin hai ab khair.
sach hai saee jaisa daanee,
mil na sakega jag mein,
ansh eesh ka saee baaba,
unhen na kuchh bhee mushkil jag mein.

sneh, sheel, saujany aadi ka,
aabhooshan dhaaran kar,
badhata is duniya mein jo bhee,
maanav seva ke path par.
vahee jeet leta hai jagat ke,
jan jan ka ant:sthal,
usakee ek udaasee hee,
jag ko kar detee hai vihval.

jab-jab jag mein bhaar paap ka,
badh – badh hee jaata hai,
use mitaane kee hee khaatir,
avataaree hee aata hai.
paap aur anyaay sabhee kuchh,
is jagatee ka har ke,
door bhaga deta duniya ke,
daanav ko kshan bhar ke.

aise hee avataaree saeen,
mrtyulok mein aakar,
samata ka yah paath padhaaya,
sabako apana aap mitaakar.
naam dvaaraka masjid ka,
rakha shiradee mein saee ne,
daap, taap, santaap mitaaya,
jo kuchh aaya saee ne.

sada yaad mein mast raam kee,
baithe rahate the saee,
pahar aath hee raam naam ko,
bhajate rahate the saee.
sookhee – rookhee taajee baasee,
chaahe ya hove pakavaan,
sauda pyaar ke bhookhe saee kee,
khaatir the sabhee samaan.

sneh aur shraddha se apanee,
jan jo kuchh de jaate the,
bade chaav se us bhojan ko,
baaba paavan karate the.
kabhee-kabhee man bahalaane ko,
baaba baag mein jaate the,
pramudit man mein nirakh prakrti,
aanandit ve ho jaate the.

rang-birange pushp baag ke,
mand – mand hil – dul karake,
beehad veeraane man mein bhee,
sneh salil bhar jaate the.
aisee sumadhur bela mein bhee,
dukh aapaat, vipada ke maare,
apane man kee vyatha sunaane,
jan rahate baaba ko ghere.

sunakar jinakee karoonakatha ko,
nayan kamal bhar aate the,
de vibhooti har vyatha, shaanti,
unake ur mein bhar dete the.
jaane kya adbhut shakti,
us vibhooti mein hotee thee,
jo dhaaran karate mastak par,
dukh saara har letee thee.

dhany manuj ve saakshaat darshan,
jo baaba saee ke pae,
dhany kamal kar unake jinase,
charan-kamal ve parasae.
kaash nirbhay tumako bhee,
saakshaat saee mil jaata,
varshon se ujada chaman apana,
phir se aaj khil jaata.

gar pakadata main charan shree ke,
nahin chhodata umrabhar,
mana leta main jaroor unako,
gar roothate saee mujh par.

Ashutosh Shashank Shekhar Lyrics – आशुतोष शशांक शेखर चंद्रमौली चिदंबरा

श्री साईं बाबा चालीसा

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